राजीव भाई के लिए स्वदेशी का अर्थ क्या है ??
राजीव भाई के लिए ”स्वदेशी” का अर्थ बिलकुल सरल और स्पष्ट है । क्योंकि राजीव भाई के “‘स्वदेशी” की परिकल्पना आजादी बचाओ आंदोलन के समय राजीव भाई उनके मित्रो योगेश मिश्र और अन्य साथियो के कई दिन तक किए गए शोध का परिणाम है । आप ऐसे समझे कि मूलतः तीन चीजे है विदेशी-देशी-और स्वदेशी । आप लोग ”देशी” को ”स्वदेशी” समझने की भूल कर रहे है इसीलिए लोगो मे स्वदेशी को लेकर भ्रम है । समझिए कैसे ?
स्वदेशी की सरलीकृत परिभाषा ( केवल भाव को समझाने के लिए)
स्वदेशी: जो प्रकृति और मनुष्य का शोषण किये बिना अपनी सनातन संस्कृति और सभ्यता के अनुकूल आपके स्थान के सबसे निकट किसी स्थानीय कारीगर द्वारा बनायीं गयी या कोई सेवा दी गयी हो और जिसका पैसा स्थानीय अर्थव्यवस्था में प्रयोग होता हो वो स्वदेशी है ।
(जैसे- कुम्हार, बढ़ई, लौहार, मोची, किसान, सब्जीवाला, स्थानीय भोजनालय, धोबी, नाई, दर्जी आदि द्वारा उत्पादित वस्तु या सेवा)
उदाहरण के तौर पर – नीम ,बाबुल,कीकड़ आदि का दातुन स्वदेशी कहा जाएगा ,
जो आपके घर के निकट किसी कोने मे किसी गरीब द्वारा बेचा जा रहा है ।
एक तो दातुन बनने मे प्रकृति का कोई शोषण नहीं है , दूसरा ये पूर्ण रूप से प्रकृतिक है और किसी गरीब द्वारा आपके घर के निकट बेचा जा रहा है ।
(इसके साथ बस आपको अपने जन्मदिन पर के नीम का पेड़ भी लगाना है)
लेकिन अब अगर ये दातुन रिलाईंस, टाटा बिरला, पतंजलि जैसी कंपनी बेचने लगे, तो दातुन करना तो स्वदेशी ही माना जाएगा । लेकिन घर के निकट किसी गरीब को छोड़ कर हजारो करोड़ रु मुनाफा कमाने वाली इन कंपनियो से दातुन खरीद कर करना स्वदेशी नहीं माना जाएगा ।
इसलिए दाँतो के लिए दातुन स्वदेशी है, नमक तेल आदि से बना मंजन स्वदेशी है जिसमे प्रकृति का कोई शोषण नहीं है बेशर्ते वो आपके घर के निकट किसी स्थानीय व्यक्ति द्वारा बेचा जा रहा हो ।
टूथपेस्ट कभी स्वदेशी नहीं हो सकता, क्योंकि कोई भी टूथपेस्ट जितना मर्जी आयुर्वेदिक ही क्यों ना हो उसमे कुछ तो कैमिकल पड़ते ही पड़ते है । और टूथपेस्ट हमेशा बड़ी-बड़ी विदेशी और भारतीय कंपनियो द्वारा बेचा जाता है,
अब अगर आप किसी भारतीय कंपनी का बना टूथपेस्ट करते हो तो वो देशी माना जाएगा स्वदेशी नहीं ।
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इसी प्रकार ताजा गन्ने का ,मौसमी का,संतरे आदि फल का रस जो आपके घर के निकट किसी स्थानीय गरीब रेहड़ी वाला बेच रहा होगा वो उससे खरीदकर वो रस पीना स्वदेशी माना जाएगा । क्योंकि फल का रस पूर्ण रूप से प्रकृतिक है और आपके स्थानीय किसी व्यक्ति को रोजगार भी दे रहा है ।
अब आप सोचिए कि टाटा, बिरला, अंबानी, पारले, पतंजलि आदि हजारो करोड़ कमाने वाली कंपनियाँ नारियल पानी, गन्ने का रस, मौसमी का रस, फ्रूटी, एपी फ़िज़ आदि पैक करके बेचना चालू कर दे तो उनसे खरीदकर किसी फल का रस पीना कभी स्वदेशी नहीं कहलाएगा । ( वो देशी होगा)
1) तो विदेशी कंपनियो द्वारा बनाया गया पेय पदार्थ कोक,पेप्सी,लिमका,फेंटा आदि खरीदकर पीना “”विदेशी” ,
2) टाटा, बिरला, अंबानी, पतंजलि आदि हजारो करोड़ कमाने वाली भारतीय कंपनियो का बना कोई पेय पदार्थ खरीदना और पीना ये हुआ ”देशी”
3) घर के निकट किसी स्थानीय व्यक्ति, (गरीब रेहड़ी वाला आदि) से खरीदकर उसे रोजगार देकर कोई पेय पदार्थ जिसमे प्रकृति का शोषण न हो वो ”स्वदेशी” है ।
(दारू हमारी सभ्यता का अंश नहीं है इसलिए दारू पीना कभी स्वदेशी नहीं हो सकता वो बेशक घर के निकट कोई बेचे या कोई भारतीय कंपनी)
क्योंकि मैंने ऊपर ही कहा था कि स्वदेशी का अर्थ अपनी सभ्यता,संस्कृति का उल्लघन करना नहीं है, यदि दारू स्वदेशी हो गई, तो ”पतंजलि स्वदेशी कोठा” भी स्वदेशी ही होगा । और इस तरह का तथाकथित “स्वदेशी’ भारत को विनाश की और धकेलेगा ।
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इसी प्रकार दीपवाली के दिनो मे मिट्टी के दीपक जलाना, और वो दीपक किसी स्थानीय कुम्हार से खरीदना कर जलाना ही स्वदेशी कहलाएगा । क्योंकि मिट्टी से बना दीपक पूर्ण रूप से प्रकृतिक है, और स्थानीय कुम्हार से खरीदना उसे रोजगार देना ही स्वदेशी है । बिजली की झालड़ (लड़ी) वो बेशक भारत की किसी बड़ी कंपनी ने ही क्यों ना बनाई हो वो देशी कहलाएगी, स्वदेशी नहीं, स्वदेशी तो मिट्टी का दीपक ही होगा बेशर्ते वो किसी स्थानीय कुम्हार द्वारा निर्मित हो और बेचा जाए ।
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इसी प्रकार कोट-पैंट आप किसी बड़ी भारतीय कंपनी का बना पहनो ,या खुद सिलवाकर पहनो कभी स्वदेशी नहीं कहलाएगा । क्योंकि कोर्ट पैंट हमारी सभ्यता का अंश नहीं । इसलिए कोई विदेशी कंपनी बनाए या देशी । लेकिन स्वदेशी नहीं हो सकता ।
कुर्ता पजामा,धोती कुर्ता, ही हमारी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है,और खादी का कुर्ता पजामा किसी स्थानीय दर्जी से सिलवाकर पहनना ही स्वदेशी है । बड़ी कंपनी से खरीदना नहीं ।
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इसी प्रकार अमूल ,वेरका ,मदर डायरी, आदि बड़ी-बड़ी कंपनियो का जर्सी-देशी गायों का मिक्स पैकेट बंद दूध पीना ,पतंजलि का जर्सी गायों के दूध से बना घी ”देशी” हो सकता है लेकिन कभी ”स्वदेशी” नहीं कहलाएगा ।
अपने घर के निकट किसी स्थानीय गौशाला मे देशी भारतीय गौवंश के दूध,और दूध से बने उत्पाद पनीर ,मक्खन घी आदि खरीदना उसका उपयोग करना ही स्वदेशी कहलाएगा। जिससे उस गौशाला मे काम करने वालों को रोजगार मिले उनकी आर्थिक मदद हो । वो ही स्वदेशी कहा जाएगा ।