वंदे मातरम।  

मेरा मन हो स्वदेशी, मेरा तन हो स्वदेशी। मर भी जाऊं तो भी मेरा होवे कफ़न स्वदेशी |

क्या आप अपने देश के लिए कुछ करना चाहते है ? हाँ/नहीं 

क्या आप स्वदेशी अर्थव्यवस्था और संस्कृति के लिए कार्य करना चाहते है ?  हाँ/नहीं 

अगर इन सवालो के जवाब हाँ है तो लेख पूरा अवश्य पढ़े –

दोस्तों हम भारतवासी आज भी वही गुलामी की जंजीरो में जकड़े हुए है। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की सच्ची बुलंद आवाज बनने वाले क्रांतिकारी भाई राजीव दीक्षित जी ने यह सच्चाई देशवासियो के सामने रखी। एक वक़्त था जब हमारा देश सोने की चिड़िया और विश्वगुरु कहलाया करता था |

क्युकी आर्थिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण में सबसे आगे था। 

आइये जानते है देश के गर्त में जाने की कहानी –

जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आयी यहाँ व्यापार करने के लिए और धीरे-धीरे हमें गुलाम बनाया गया था।  वर्तमान स्तिथि भी यही है |

आज हमारे देश में कई हजार कम्पनियाँ व्यापार करने के लिए विदेशो से आयी हुई है जिस वजह से हमारे देश के किसान, मजदूर, लघु उद्योग और व्यापारियों का अस्तित्व ख़त्म सा होता जा रहा है। 

भारत में पहले अधिकतर लोग आत्मनिर्भर थे लेकिन आज स्तिथि यह है की माँ-बाप अपने बच्चो को बड़ी-बड़ी डिग्री करवाने में अपनी जिंदगी भर की कमाई झोंक देते है और फिर किसी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी का सपना देखते है। कई बार अकेले रहने वाले बच्चे, विद्यार्थी गलत आदतों का शिकार हो जाते हैं और नौकरी के चक्कर में सदस्य आपसी सहयोग से कार्य नहीं कर पाते हैं और धीरे धीरे परिवार में कलह उत्पन्न होने लगता है। 

15 अगस्त 1947 से लेकर आज तक की मौजूदा सरकार कई तर्क देकर विदेशी कम्पनियो को भारत में लाती है(असल में विदेशी कम्पनियो से पार्टी फण्ड मिलता है) :-

  1. विदेशी पूँजी या मुद्रा आती है – लेकिन होता उल्टा विदेशी कंपनियां यहाँ अपने निवेश किये गए पैसे कई गुना पैसा यहाँ से ले जाती है। आज 5000 से भी ज्यादा कम्पनिया यहाँ से पैसा विदेश ले जा रही है। मतलब पूँजी आती नहीं है बल्कि यहाँ से जाती है। 
  2.  निर्यात(एक्सपोर्ट) बढ़ता है – 1 ईस्ट इंडिया कम्पनी के समय तक देश 33% निर्यात करता था और इन हजारो विदेशी कम्पनियो की वजह से आज यह बहुत कम रह गया है।  
  3. तकनिकी लेकर आती है – 90 % से ज्यादा कंपनियां शुन्य तकनिकी लेकर आती है जैसे सौंदर्य सामग्री के उत्पाद, साबुन बनाना, अचार, चिप्स, टमाटर चटनी, शैम्पू, तेल इत्यादि प्रकार की खाद्य वस्तुएँ बनाना।  इन सभी कम्पनियो से बेहतरीन तकनिकी हमारे देश की गृहणियों, मजदूर भाइयो, किसानो के हाथ में है उनके सभी पदार्थो में स्वदेशी खुशबू और पोषकता है लेकिन यही काम मशीनों से होने से पोषकता खत्म हो रही है लोग बेरोजगार हो रहे है और निम्न पोषकता की वजह से बीमार पड़ रहे है। 

वक़्त आ गया है दोस्तों लाल पाल बाल नेताओ की नीति अपनाने का।  विदेशी वस्तुओ की होली जलाने का ।  संपूर्ण बहिष्कार और असहयोग आंदोलन पुनः स्थापित करने का। 

हमारे सच्चे क्रांतिकारियों का सपना था भारत को लूटने के लिए अंग्रेजो द्वारा बनाये गए 34735 कानूनों का रद्द होना लेकिन आजादी के इतने सालो बाद भी हम उन कानूनों को ढो रहे है और यही कारण है भारत आज भी भ्रष्टाचार, गरीबी, भुखमरी और बेकारी का शिकार है। भारत मां को आजाद कराने को जो हंसते-हंसते फांसी के फंदों पर झूल गए उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आजादी के बाद भी अंग्रेजों की ही कानूनी प्रक्रियाए काम करती रहेगी।

अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व हमारे देश में स्थापित किया गया जबकि सम्पूर्ण विश्व आज सभी भाषाओ की जननी संस्कृत पर आधारित सुपर कम्प्यूटर तैयार करने में लगा है। 

हमारे देश में गुरुकुल शिक्षा पद्द्ति थी जिसे चलते कई विद्वान् और वैज्ञानिको ने बड़े-बड़े कार्य किए क्युकी गुरुकुल शिक्षा प्रणाली पूर्णतः विज्ञान, अध्यात्म और प्रैक्टिकल आधारित थी किन्तु आज रटन प्रणाली अंग्रेजी अधिकारी मैकाले की देन है जिसे आजादी के बाद भी यूही ढोया जा रहा है। 

अंग्रेजी न्याय व्यवस्था जिसमे आज कोर्ट से सालो-सालो न्याय नहीं मिलता है जबकि भारत में न्याय मिलने में देरी को भी अन्याय समझा जाता था। 

अंग्रेजी चिकित्सा पद्द्ति एलोपैथी जिसे व्यापक स्तर पर बहुत बढ़ावा दिया गया लेकिन हम सभी जानते है की अंग्रेजी दवाएं एक बीमारी के लक्षणो को दबाकर दसों नयी बीमारियां पैदा कर देती है और दूसरी ओर हमारी प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद और योग के द्वारा हम बीमारियों का सफाया जड़ से कर सकते है। 

इसी प्रकार अंग्रेजो के भारत छोड़ कर जाने के बाद भी उनकी सभ्यता और संस्कृति हमारी संस्कृति को लुप्त करती जा रही है तो समय रहते हमें पुनः अपनी संस्कृति, सभ्यता और भारतीयता की ओर लौटने की जरुरत है। 

अधिक से अधिक स्वदेशी वस्तुओ के साथ-साथ स्वदेशी संस्कृति और सभ्यता अपनाये ताकि आने वाले समय में हमारा भारत पुनः खड़ा होकर सोने का शेर बन सके। 

जरा सोच कर देखे साथियो अगर हम सभी 131 करोड़ भारतवासी 1-1 कदम भी देशहित के लिए बढ़ाये तो हमारा देश 131 करोड़ कदम आगे बढ़ जायेगा। 

अंत में आपसे यह विनती है की राजीव भाई दीक्षित जी को जरूर युटुब पर सर्च करके सुने और आजाद भारत एप्लीकेशन(प्ले स्टोर) जरूर डाउनलोड करें और इसी की वेबसाइट ajadbharat.com विजिट करें| वो आपको स्वदेशी कम्पनियो की लिस्ट मिलेगी और स्वदेशी नीतियों से सम्बंधित सभी कुछ आपको आने वाले समय में वह मिलेगा। 

नोट – कृपया इस सन्देश पत्र को पढ़कर अपने पडोसी को जरूर देंवे। पेड़ काटकर कागज बनाये जाते है अतः पर्यावरण संरक्षण के लिए इस पत्र को आगे प्रेषित करते रहें।   इस पत्र की फोटो लेकर सोशल मीडिया पर अवश्य डाले और आजाद भारत के पेज को टैग अवश्य करें | 

लिबासे गुलामी जलाना पड़ेगा | ये वो दाग है जो मिटाना पड़ेगा | कैद से वतन को छुड़ाना पड़ेगा।